समय एक पोतड़ा है, स्थान एक पोतड़ा है, देह एक पोतड़ा है और इसी प्रकार हैं इन्द्रियां तथा उनके द्वारा अनुभव-गम्य वस्तुएं भी । माँ भली प्रकार जानती है की पोतड़े शिशु नहीं हैं । परन्तु बच्चा यह नहीं जानता | अभी मनुष्य का अपने पोतड़ों में बहुत ध्यान रहता है जो हर दिन के साथ, हर युग के साथ बदलते रहते हैं । इसलिए उसकी चेतना में निरंतर परिवर्तन होता रहता है; इसीलिए उसका शब्द, जो उसकी चेतना की अभिव्यक्ति है, कभी भी अर्थ में स्पष्ट और निश्चित नहीं होता; और इसीलिए उसके विवेक पर धुंध छाई रहती है; और इसीलिए उसका जीवन असंतुलित है।
यह तिगुनी उलझन है । इसीलिए मनुष्य सहायता के लिए प्रार्थना करता है । उसका आर्तनाद अनादि काल से गूंज रहा है । वायु उसके मिलाप से बोझिल है । समुद्र उसके आंसुओं के नमक से खारा है । धरती पर उसकी कब्रों से गहरी झुर्रियां पड़ गईं हैं | आकाश उसकी प्रार्थनाओं से बहरा हो गया है । और यह सब इसलिए कि अभी तक वह ;मैं' का अर्थ नहीं समझता जो उसके लिए है पोतड़े और उसमे लिपटा हुआ शिशु भी।
'मैं कहते हुए मनुष्य शब्द को दो भागों में चीर देता है; एक, उसके पोतड़े; दूसरा प्रभु का अमर अस्तित्व । क्या मनुष्य वास्तव में अविभाज्य को विभाजित कर देता है ? प्रभु न करे ऐसा हो । अविभाज्य को कोई शक्ति विभाजित नहीं कर सकती-इश्वर की शक्ति भी नहीं । मनुष्य अपरिपक्व है इसलिए विभाजन की कल्पना करता है | और मनुष्य, एक शिशु, उस अनंत अस्तित्व को अपने अस्तित्व का बैरी मानकर लड़ाई के लिए कमर कस लेता है और युद्ध की घोषणा कर देता है। इस युद्ध में, जो बराबरी का नहीं मनुष्य अपने मांस के चीथड़े उदा देता है, अपने रक्त की नदियाँ वह देता है; जबकि परमात्मा, जो माता भी है और पिता भी, स्नेह-पूर्वक देखता रहता है, क्योंकि वह भली-भाँती जानता है कि मनुष्य अपने उन मोटे पर्दो को ही फाड़ रहा है और अपने उस कड़वे द्वेष को ही बहा रहा है जो उस एक के साथ उसकी एकता के प्रति उसे अँधा बनाय हुए है ।यही मनुष्य की नियति है- लड़ना और रक्त बहाना और मूर्छित हो जाना,और अंत में जागना और 'मैं' के अंदर की दरार को अपने मांस से भरना और अपने रक्त से उसे मजबूती से बंद कर देना । इसलिए साथियों.... तुम्हे सावधान कर दिया गया है- और बड़ी बुद्धिमानी के साथ सावधान कर दिया गया है कि मैं शब्द का प्रयोग कम से कम करो क्युकी जब तक आप मै शब्द से बंधे हुए हो तब तक तुम अपने झुटे अभिमान कोंचंटे रहोगे, बटोरते रहोगे केवल हर जीवन के बाद मृत्यु को (कालचक्र), पीड़ाओं को और वदेनाओ को।
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