शुक्रवार, 28 जनवरी 2022

मैं कौन हूं?

अनंत जन्मों से मैं कौन हूँ' उसकी पहचान ही अटकी हुई है, इसलिए तो इस भटकन का अंत नहीं होता! उसकी पहचान कैसे हो? जिसे खुद की पहचान हो गई हो, वही व्यक्ति अन्य व्यक्तियों को आसानी से पहचान करा सकता है। 

शान्तचित्त से नेत्र मूँदकर किसी सरल आसन पर बैठिए। गहरी श्वास खींचिये। थोड़ी देर रोककर बाहर निकाल दीजिए। सारे दोष, विकार, इच्छाएँ श्वास के साथ बाहर चले गये। ध्यान कीजिए कि सम्पूर्ण आकाश में केवल एक मैं ही हूँ। थोड़ी देर पश्चात् अपनी आत्मा में से एक तेजपुञ्ज निकलकर अपने चारों ओर घेरे की तरह फैलता हुआ अनुभव कीजिए। घेरे के चारों ओर प्रकाश की बहुत ऊँची, असीम दीवारें खड़ी हुई हैं। मैं इस दुर्ग के अन्दर सुरक्षित बैठा हुआ हूँ। सारे दोष, बुराइयाँ घेरे के बाहर खड़ी हैं। इनकी पहुँच हम तक किसी भी प्रकार नहीं हो सकती। स्फटिकमणि के जगमगाते आसन पर बैठा हुआ अनुभव कीजिए।

थोड़ी देर पश्चात् ध्यान करें। प्राण शक्ति का निरन्तर प्रवाह मस्तिष्क मध्य में से होता हुआ पूरे शरीर में फैल रहा है। हर एक अंग पर ध्यान जमाइएँ और उस अंग को स्वस्थ, सबल, सतेज अनुभव कीजिए। यह भावना हाथ, पाँव, नाक, कान, आँख, छाती आदि समस्त अंगों में करने के बाद सम्पूर्ण शरीर को एक साथ देखिए। वह सब प्रकार से स्वस्थ, सुन्दर, सशक्त, सतेज है। उसके अन्दर पर्याप्त शक्ति है। पूर्ण स्वस्थता है। रक्त संचार ठीक से हो रहा है। स्फूर्ति छलक रही है। तेज जगमगा रहा है।

अब मन का ध्यान कीजिए। मस्तिष्क स्थान में तीव्र बुद्धि, स्मरण शक्ति, ज्ञान, विवेक भरा है। हृदय स्थान में सत्य, प्रेम, न्याय, दया, साहस, त्याग, उत्साह, कर्मनिष्ठा आदि सद्गुणों की बहुलता देखिए। मन ही मन निम्न मन्त्रों का जाप करते जाइये।

1. मैं स्वस्थता और सबलता का केन्द्र हूँ।
2. मैं शक्ति और तेज का पुञ्ज हूँ।
3. मैं अपने भाग्य का स्वामी हूँ।
4. मैं पवित्रता और श्रेष्ठता से परिपूर्ण हूँ।
5. मैं सुसम्पन्न शरीर, मस्तिष्क और अन्तःकरण धारण किये हुए हूँ।

सोमवार, 24 जनवरी 2022

मनुष्य पोतड़ों में लिपटा एक परमात्मा है।

मनुष्य पोतड़ों में लिपटा एक परमात्मा है।

समय एक पोतड़ा है, स्थान एक पोतड़ा है, देह एक पोतड़ा है और इसी प्रकार हैं इन्द्रियां तथा उनके द्वारा अनुभव-गम्य वस्तुएं भी । माँ भली प्रकार जानती है की पोतड़े शिशु नहीं हैं । परन्तु बच्चा यह नहीं जानता | अभी मनुष्य का अपने पोतड़ों में बहुत ध्यान रहता है जो हर दिन के साथ, हर युग के साथ बदलते रहते हैं । इसलिए उसकी चेतना में निरंतर परिवर्तन होता रहता है; इसीलिए उसका शब्द, जो उसकी चेतना की अभिव्यक्ति है, कभी भी अर्थ में स्पष्ट और निश्चित नहीं होता; और इसीलिए उसके विवेक पर धुंध छाई रहती है; और इसीलिए उसका जीवन असंतुलित है।

यह तिगुनी उलझन है । इसीलिए मनुष्य सहायता के लिए प्रार्थना करता है । उसका आर्तनाद अनादि काल से गूंज रहा है । वायु उसके मिलाप से बोझिल है । समुद्र उसके आंसुओं के नमक से खारा है । धरती पर उसकी कब्रों से गहरी झुर्रियां पड़ गईं हैं | आकाश उसकी प्रार्थनाओं से बहरा हो गया है । और यह सब इसलिए कि अभी तक वह ;मैं' का अर्थ नहीं समझता जो उसके लिए है पोतड़े और उसमे लिपटा हुआ शिशु भी।
'मैं कहते हुए मनुष्य शब्द को दो भागों में चीर देता है; एक, उसके पोतड़े; दूसरा प्रभु का अमर अस्तित्व । क्या मनुष्य वास्तव में अविभाज्य को विभाजित कर देता है ? प्रभु न करे ऐसा हो । अविभाज्य को कोई शक्ति विभाजित नहीं कर सकती-इश्वर की शक्ति भी नहीं । मनुष्य अपरिपक्व है इसलिए विभाजन की कल्पना करता है | और मनुष्य, एक शिशु, उस अनंत अस्तित्व को अपने अस्तित्व का बैरी मानकर लड़ाई के लिए कमर कस लेता है और युद्ध की घोषणा कर देता है। इस युद्ध में, जो बराबरी का नहीं मनुष्य अपने मांस के चीथड़े उदा देता है, अपने रक्त की नदियाँ वह देता है; जबकि परमात्मा, जो माता भी है और पिता भी, स्नेह-पूर्वक देखता रहता है, क्योंकि वह भली-भाँती जानता है कि मनुष्य अपने उन मोटे पर्दो को ही फाड़ रहा है और अपने उस कड़वे द्वेष को ही बहा रहा है जो उस एक के साथ उसकी एकता के प्रति उसे अँधा बनाय हुए है ।यही मनुष्य की नियति है- लड़ना और रक्त बहाना और मूर्छित हो जाना,और अंत में जागना और 'मैं' के अंदर की दरार को अपने मांस से भरना और अपने रक्त से उसे मजबूती से बंद कर देना । इसलिए साथियों.... तुम्हे सावधान कर दिया गया है- और बड़ी बुद्धिमानी के साथ सावधान कर दिया गया है कि मैं शब्द का प्रयोग कम से कम करो क्युकी जब तक आप मै शब्द से बंधे हुए हो तब तक तुम अपने झुटे अभिमान कोंचंटे रहोगे, बटोरते रहोगे केवल हर जीवन के बाद मृत्यु को (कालचक्र), पीड़ाओं को और वदेनाओ को।

शुक्रवार, 21 जनवरी 2022

क्रिया योग कैसे करते है?

1 *एक क्रिया व्यवसायी को दिन में कम से कम 2 बार यानी सुबह और शाम अभ्यास करना चाहिए, शुरुआत में 2 घंटे और कुछ के बाद 3 घंटे तक बढ़ाना चाहिए।

2*क्रिया को पूरा करने के लिए जल्दबाजी के बिना बहुत आराम से अभ्यास किया जाना चाहिए

3*क्रिया एक क्रिया चिकित्सक को 4 से 6 घंटे पहले कुछ भी नहीं खाना चाहिए
क्रिया का अभ्यास करना।

4*क्रिया अभ्यास के दौरान एक शुद्ध ऊनी कम्बल पर बैठना चाहिए
उस पर रेशम।

5*शरीर के किसी भी हिस्से को फर्श को नहीं छूना चाहिए।

6*बैठने की मुद्रा एकदम सही होनी चाहिए, बिना किसी भी भाग के
शरीर।

7*मानसिक आंखों को भौंहों या अग्न्या के केंद्र में तय किया जाना चाहिए
चक्र शारीरिक आंखों को तनाव रहित करता है।

8*साँस लेने के दौरान 'ओम' का 6 बार और साँस छोड़ने के दौरान 6 बार जप करें।

9*एक साथ मन को अग्नि चक्र में स्थिर करना चाहिए।

10*क्रिया अभ्यास के लिए सिद्धासन सर्वश्रेष्ठ आसन है।

11*केवल सात्विक भोजन ही लेना चाहिए। भोजन के लिए बहुत महत्वपूर्ण कारक है।

क्रिया व्यवसायी के लिए अच्छा नहीं है: ज्यादा खाना, घूमना, सोना, बहुत गर्म या बहुत ठंडा, बहुत मसालेदार खाना आदि।

*छह या साढ़े छह घंटे की नींद पर्याप्त है।
*बहुत ज्यादा टी। वी। देखना, गपशप करना, विभिन्न पुस्तकें पढ़ना, गपशप करना मना किया हुआ।
*महिला साथी स्वीकार्य नहीं हैं।
*थोड़ी उन्नति के बाद, ब्रह्मचर्य बनाए रखना पड़ता है।
*हमेशा अंधेरे कमरे के अंदर क्रिया का अभ्यास करें।
*कभी भी किसी भी दृश्य, शक्तियों या किसी अन्य अनुभव के बारे में बात न करें।
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