बुधवार, 14 जुलाई 2021

भक्ति सम्पन्न करने की नौ विधियाँ

 


श्रवणं: भगवान के पवित्र नाम को सुनना भक्ति का शुभारम्भ है | श्रीमद् भागवतम के पाठ को सुनना सर्वाधिक महत्वपूर्ण श्रवण विधि है | श्रवण से प्रारम्भ करके भक्ति द्वारा ही मनुष्य पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान तक पहुँच सकता है  परीक्षित महाराज ने केवल श्रवण से मोक्ष प्राप्त किया |

कीर्तनं: भगवान् के पवित्र नाम का सदैव कीर्तन करना | चैतन्य महाप्रभु ने संस्तुति की है: “कलह तथा कपट के इस युग में उद्धार का एक मात्र साधन भगवान् के नाम का कीर्तन है | कोई अन्य उपाय नहीं है, कोई अन्य उपाय नहीं है, कोई अन्य उपाय नहीं है | निरपराध होकर हरे कृष्ण महामंत्र का कीर्तन करने मात्र से सारे पाप-कर्म दूर होजाते हैं और भगवतप्रेम की कारणस्वरूपा शुद्ध भक्ति प्रकट होती है ,भगवान का पवित्र नाम भगवान के ही समान शक्तिमान है, अतः भगवान के नाम के कीर्तन तथा श्रवण-मात्र से लोग दुर्लघ्य मृत्यु को शीघ्र ही पार कर लेते हैं  शुकदेव गोस्वामी जी ने केवल कीर्तन से मोक्ष प्राप्त किया |

स्मरणं: श्रवण तथा कीर्तन विधियों को नियमित रूप से संपन्न करने तथा अंत:करण को शुद्ध कर लेने के बाद स्मरण की संस्तुति की गयी है | मनुष्य को स्मरण की सिद्धि तभी मिलती है जब वह निरन्तर भगवान के चरण कमलों का चिंतन करता है | भक्तियोग का मूल सिद्धांत है भगवान के विषय में निरंतर चिंतन करना, चाहे कोई किसी तरह से भी चिंतन करे | प्रह्लाद महाराज ने भगवान के निरन्तर स्मरण से मोक्ष प्राप्त किया |

पाद-सेवनम: भगवान के चरण कमलों के चिंतन में गहन आसक्ति होने को पाद-सेवनम कहते हैं | वैष्णव, तुलसी, गंगा तथा यमुना की सेवा, पाद-सेवनम में शामिल है | लक्ष्मी जी ने भगवान के चरण कमलों की सेवा कर के सिद्धि प्राप्त की |

अर्चनं: अर्चनं अर्थात भगवान के अर्चाविग्रह  की पूजा | अर्चाविग्रह  की पूजा अनिवार्य है | प्रथु महाराज ने भगवान के अर्चाविग्रह  की पूजा कर के मोक्ष प्राप्त किया |

वन्दनं: भगवान की वंदना या स्तुति करना | अक्रूरजी ने वंदना के द्वारा मोक्ष प्राप्त किया |

दास्यम: दास के रूप में भगवान की सेवा करना | हनुमान जी ने भगवान राम की सेवा कर के मोक्ष प्राप्त किया|


साख्यं: मित्र के रूप में भगवान की पूजा करना | सखा शब्द प्रगाढ़ प्रेम का सूचक है | अर्जुन ने भगवान से मैत्री स्थापित कर के मोक्ष प्राप्त किया 

आत्मनिवेदनम: जब भक्त अपना सर्वस्व भगवान को अर्पित कर देता है और हर कार्य भगवान को प्रसन्न करने के लिए करता है, यह अवस्था आत्मनिवेदनम है | आत्मनिवेदनम का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण बलि महाराज तथा अम्बरीष महाराज का है | आत्मसमर्पण करने के फलस्वरूप भगवान बलि महाराज के द्वारपाल बन गये तथा उन्होंने सुदर्शन चक्र को अम्बरीष महाराज की सेवा में नियुक्त कर दिया |

भक्ति सम्पन्न करने की नौ संस्तुत विधियाँ सर्वश्रेष्ठ हैं, क्योंकि इन विधियों में कृष्ण तथा उनके प्रति प्रेम प्रदान करने की महान शक्ति निहित है | भक्ति का फल जीवन का चरम लक्ष्य भगवत्प्रेम है  | श्री चैतन्य महाप्रभु ने कहा है: “जब मनुष्य श्रवण, कीर्तन से आरम्भ होने वाली इन नौ विधियों से कृष्ण की प्रेममयी सेवा करता है, तब उसे सिद्धि का पाँचवां पद एवं जीवन के लक्ष्य की सीमा भगवत्प्रेम की प्राप्ति होती है”   | जब कोई व्यक्ति भक्ति में स्थिर हो जाता है, तो चाहे एक विधि को सम्पन्न करे या अनेक विधियों को, उसमे भगवत्प्रेम जागृत हो जाता है  | वह भी श्री कृष्ण को प्रसन्न कर सकता है, जिस प्रकार उपरोक्त ने किया है |

||जय जय श्री राधे राधे ||

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